वृष लग्न में केतु प्रथम स्थान में

वृष लग्न में केतु की स्थिति प्रथम स्थान में

राहु और केतु दोनों छायाग्रह हैं, पापग्रह हैं, अंधेरे के प्रतीक हैं और सूर्य, चन्द्र के शत्रु है। राहु राक्षस का सिर है, सर्प का मुख है, अतः ज्यादा डरावना à¤µ घातक है जबकि केतु राक्षस का धड़ है, सर्प की पूंछ अतः ज्यादा घातक नहीं है अपितु केतु के एक हाथ में ध्वजा है, जो कीर्ति का प्रतीक है। इस सूक्ष्म अन्तर को हमें समझना होगा तभी फलादेश में सूक्ष्मता आएगी। राहु जिस घर (भाव) में होता है, उसका नाश करता है जबकि केतु जिस घर (भाव) में होगा उसके प्रति जातक की महत्त्वाकांक्षा (भूख) बढ़ा देता है।

वृष लग्न में लग्नस्थ केतु अपनी नीच राशि वृष में होगा । जातक के पद-प्रतिष्ठा प्राप्त करने की महत्त्वाकांक्षा होगी। जातक प्रतिपल उन्नति मार्ग को ओर आगे बढ़ने के लिए चेष्टावान रहेगा। जातक पिता या बृहस्पति से मार्गदर्शन प्राप्त करता रहेगा।निशानी- जातक पिता के साथ रहने वाला होगा अथवा भाइयों में बड़ा होगा। दशा-केतु की दशा अंतर्दशा व संघर्ष के बाद सफलता की द्योतक होगी।

 

केतु का अन्य ग्रहों से संबंध

1. केतु सूर्य केतु के साथ सूर्य जातक को कष्टानुभूति देगा।

2. केतु + चन्द्र - उच्च के चंद्रमा के साथ केतु होने से राजयोग शक्तिशाली होगा।

3. केतु-मंगल-मंगल के साथ केतु होने से गृहस्थ सुख में मनोमालिन्यताआएगी।

4. केतु + बुध- जातक धनवान होगा।

5. केतु बृहस्पति- जातक धार्मिक होगा।

6. केतु-शुक्र- जातक कामी होगा।

7. केतु+ शनि- जातक भाग्यशाली होगा।

 

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