वृष लग्न में केतु तृतीय स्थान में

वृष लग्न में केतु की स्थिति तृतीय स्थान में

राहु और केतु दोनों छायाग्रह हैं, पापग्रह हैं, अंधेरे के प्रतीक हैं और सूर्य, चन्द्र के शत्रु हैं। राहु राक्षस का सिर है, सर्प का मुख है अतः ज्यादा डरावना व घातक है जबकि केतु राक्षस का धड़ है, सर्प की पूछ अतः . ज्यादा घातक नहीं है अपितु केतु के एक हाथ में ध्वजा है, जो कीर्ति का प्रतीक है। इस सूक्ष्म अन्तर को हमें समझना होगा तभी फलादेश में सूक्ष्मता आएगी। राहु जिस घर (भाव) में होता है। उसका नाश करता है जबकि केतु जिस घर (भाव) में होगा उसके प्रति जातक की महत्त्वाकांक्षा (भूख) बढ़ा देता है। 

वृष लग्न में केतु लग्नेश शुक्र से शत्रुभाव रखता है। यहां केतु तृतीय स्थान में कर्क राशि का है। कर्क राशि में केतु की शत्रु राशि है। यहां केतु ज्यादा उद्विग्न रहेगा। जातक भाई-बहन परिजनों से प्रेमभाव स्नेह-संबंध प्रगाढ़ बनाने हेतु लालायित रहेगा।

निशानी- à¤à¤¸à¤¾ जातक नेकी को याद रखता है, बुराई को भूल जाता है।

 

दशा- à¤•à¥‡à¤¤à¥ की दशा अंतर्दशा में कीर्ति की वृद्धि होगी।

 

केतु का अन्य ग्रहों से संबंध

1. केतु सूर्य- जातक सुखी होगा. पराक्रमी होगा। 

2. केतु + चन्द्र-मित्रों से यारी पूरी निभाएगा।

3. केतु+मंगल- खर्चीले स्वभाव का होगा। पत्नी (अन्य स्त्रियों) पर रुपया खर्च करेगा।

4. केतु. बुध-मित्रों व परिजनों के षड्यन्त्र का शिकार होगा।

5. केतु बृहस्पति - व्यापार-व्यवसाय से लाभ कमाने वाला होगा।

6. केतु-शुक्र- पराक्रमी होगा। रोगी भी होगा।

7. केतु-शनि मित्रों के सहयोग से भाग्योदय होगा। जनसम्पर्क अच्छा रहेगा।


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