वृष लग्न में केतु की स्थिति चतुर्थ स्थान में

वृष लग्न में केतु की स्थिति चतुर्थ स्थान में

 

राहु और केतु दोनों छायाग्रह हैं, पापग्रह हैं, अंधेरे à¤•à¥‡ प्रतीक हैं और सूर्य, चन्द्र के शत्रु हैं। राहु राक्षस का सिर है, सर्प का मुख है, अतः ज्यादा डरावना व घातक है जबकि केतु राक्षस का धड़ है, सर्प की पूंछ अतः ज्यादा घातक नहीं है अपितु केतु के एक हाथ में ध्वजा है, जो कीर्ति का प्रतीक है। इस सूक्ष्म अन्तर को हमें समझना होगा तभी फलादेश में सूक्ष्मता आएगी। राहु जिस घर (भाव) में होता है। उसका नाश करता है जबकि केतु जिस घर (भाव) में होगा उसके प्रति जातक की महत्त्वाकांक्षा (भूख) बढ़ा देता है।

 

वृष लग्न में केतु लग्नेश शुक्र से शत्रु भाव रखता है। यहां चतुर्थ स्थान में केतु सिंह राशि में होगा। केतु यहां शत्रु राशि में होने से ज्यादा उद्विग्न रहेगा। ऐसे जातक का माता से, सासु माता या मौसी से मनमुटाव रहेगा पर जातक उनसे स्नेहपूर्ण संबंध स्थापित करने हेतु प्रतिपल लालायित रहेगा। जातक को भौतिक सुख-साधन ऐश्वर्य की प्राप्ति हेतु काफी संघर्ष करना पड़ेगा। पिता से भी संबंध ज्यादा मधुर नहीं रहेंगे पर जातक अपनी ओर से संबंध मधुर करने के लिए संचेष्ट रहेगा।

 

निशानी-कुलपुरोहित को पूजने वाला ।

 

दशा-केतु की दशा-अंतर्दशा शुभ फल देगी।

 

केतु का अन्य ग्रहों से संबंध

 

1. केतु+सूर्य- जातक का निजी मकान, भवन होगा। उत्तम होगा। खुद का वाहन भी होगा।

2. केतु-चन्द्र- जातक यार मित्रों से अच्छा व्यवहार निभाएगा। सुखी होगा।

3. केतु-मंगल- जातक भौतिक सुख संसाधनों की प्राप्ति हेतु रुपया खर्च करेगा।

4. केतु-बुध- जातक धनी होगा। शिक्षित होगा। सन्तान भी शिक्षित होगी पर रुकावट के साथ आगे बढ़ेगी।

5. केतु+बृहस्पति- जातक धार्मिक होगा। व्यापार प्रिय होगा।

6. केतु-शुक्र- जातक परिवार वालों का विशेष ख्याल रखेगा। कुटुम्ब का रक्षक होगा।

7. केतु-शनि-जातक महाधनी होगा। एक से अधिक प्रकार के व्यापार करेगा।

 

 

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