वृष लग्न में केतु की स्थिति नवम स्थान में

वृष लग्न में केतु की स्थिति नवम स्थान में

 

राहु और केतु दोनों छायाग्रह हैं, पापग्रह है, अंधेरे के प्रतीक हैं और सूर्य, चन्द्र के शत्रु हैं। राहु राक्षस का सिर है, सर्प का मुख है, अतः ज्यादा डरावना व घातक है जबकि केतु राक्षस का धड़ है, सर्प की पूंछ अतः ज्यादा घातक नहीं है अपितु केतु के एक हाथ में ध्वजा है, जो कीर्ति का प्रतीक है। इस सूक्ष्म अन्तर को हमें समझना होगा तभी फलादेश में सूक्ष्मता आएगी। राहु जिस घर (भाव) में होता है। उसका नाश करता है जबकि केतु जिस घर (भाव) में होगा उसके प्रति जातक की महत्त्वाकांक्षा (भूख) बढ़ा देता है।

 

वृष लग्न में केतु लग्नेश शुक्र से शत्रु भाव रखता है। केतु यहां नवम स्थान में मकर राशि का होगा। मकर राशि केतु की मूल त्रिकोण राशि है। जातक भाग्योदय के प्रति, उन्नति के प्रति, आगे बढ़ने के लिए बहुत लालायित चेष्टावान रहेगा। आगे बढ़ने के अवसर भी जीवन में मिलते रहेंगे।

 

निशानी जातक पिता का आज्ञाकारी पुत्र होगा।

विशेष- तृतीय भाव (कर्क राशि) में शत्रु ग्रह हो तो विवाह के सात वर्ष बाद सन्तान होगी।

दशा-केतु की दशा-अंतर्दशा भाग्योदय में सहायक होगी।

 

केतु का अन्य ग्रहों से संबंध

 

1. केतु सूर्य जातक सुखी एवं सम्पन्न व्यक्ति होगा। -

2. केतु + चन्द्र- जातक के रिश्तेदार धनवान एवं शक्ति सम्पन्न होंगे।

3. केतु मंगल - जातक का भाग्योदय विवाह के बाद होगा। जातक का पराक्रम बढ़ेगा।

4. केतु बुध जातक सौभाग्यशाली होगा। महाधनी होगा। उत्तम सन्तति से युक्त सफल व्यक्ति होगा।

5. केतु + बृहस्पति- जातक के भाई कुटुम्बी होंगे पर जातक के साथ उनका व्यवहार सही नहीं होता।

6. केतु शुक्र - जातक व्यापार प्रिय होगा। जातक को व्यापार में सफलता मिलेगी एवं अनेक प्रकार के व्यापार करेगा।

7. केतु-शनि जातक राजा तुल्य पराक्रमी, ऐश्वर्यशाली एवं शक्ति सम्पन्न होगा।

 

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