वृष लग्न में केतु एकादश स्थान में

वृष लग्न में केतु की स्थिति एकादश स्थान में

 

राहु और केतु दोनों छायाग्रह हैं, पापग्रह हैं, अंधेरे 1 के प्रतीक है और सूर्य चन्द्र के शत्रु है पर राहु के. राक्षस का सिर है, सर्प का मुख है, अतः ज्यादा डरावना व घातक है जबकि केतु राक्षस का धड़ है. सर्प की पूंछ अतः ज्यादा घातक नहीं है अपितु केतु के एक हाथ में ध्वजा है, जो कीर्ति का प्रतीक है। इस सूक्ष्म अन्तर को हमें समझना होगा तभी फलादेश में सूक्ष्मता आएगी। राहु जिस घर (भाव) में होता है उसका नाश करता है, जबकि केतु जिस घर (भाव) में होगा उसके प्रति जातक की महत्त्वाकांक्षा (भूख बढ़ा देता है।

 

वृषभ लग्न में केतु लग्नेश शुक्र से शत्रु भाव रखता है। केतु यहां एकादश स्थान में मीन राशि का होगा। मीन राशि केतु की स्वराशि है। ऐसा जातक व्यापार-व्यवसाय में आगे बढ़ने के प्रति चेष्टावान रहेगा। सरकारी क्षेत्र में, ठेकेदारी के कार्य में रुचि रखेगा। जातक धार्मिक कार्य, परोपकार के कार्य, जनसेवा के प्रति भी पूर्ण रुचि लेगा।

 

निशानी-नर सन्तान अधिक होगी।

 

दशा-केतु की दशा-अंतर्दशा में जातक धनवान बनेगा।

 

केतु का अन्य ग्रहों से संबंध

 

1. केतु + सूर्य- जातक का राज्य (सरकार) अथवा राजनीति में प्रभाव रहेगा।

2. केतु चन्द्र- जातक धार्मिक होगा। जातक पराक्रमी होगा।

3. केतु + मंगल-तीन पुत्र सन्तति होंगी। जातक अपने शत्रुओं को तबाह व बरबाद कर देगा।

4. केतु-बुध-कन्या योग कि बाहुल्यता दो कन्या एक पुत्र योग है।

5. केतु बृहस्पति पाँच पुत्रों का योग बनता है जातक पराक्रमी होगा।

6. केतु-शुक्र- छह कन्याओं का योग बनता है जातक प्रबल पराक्रमी होगा।

7. केतु-शनि-सात कन्याओं का योग बनता है। बृहस्पति कृपा एवं ईश्वर आराधना से एक पुत्र सम्भव है। जातक भाग्यशाली होगा।

 

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