वृष लग्न में केतु द्वादश स्थान में

वृष लग्न में केतु की स्थिति द्वादश स्थान में

 

राहु और केतु दोनों छायाग्रह हैं, पापग्रह हैं, अंधेरे के प्रतीक हैं और सूर्य, चन्द्र के शत्रु हैं। राहु राक्षस का सिर है, सर्प का मुख है, अतः ज्यादा डरावना व घातक है जबकि केतु राक्षस का धड़ है, सर्प की पूंछ है, अतः ज्यादा घातक नहीं है अपितु केतु के एक हाथ में ध्वजा है, जो कीर्ति का प्रतीक है इस सूक्ष्म अन्तर को हमें समझना होगा तभी फलादेश में सूक्ष्मता आएगी।

राहु जिस घर (भाव) में होता है। उसका नाश करता है जबकि केतु जिस घर (भाव) में होगा, उसके प्रति जातक की महत्त्वाकांक्षा (भूख) बढ़ा देती है। वृष लग्न में केतु लग्नेश शुक्र से शत्रु भाव रखता है। केतु यहां द्वादश स्थान में मेष राशि का होगा। केतु यहां अपने मित्र मंगल की राशि में होने शुभ फल देने वाला है। ऋण रोग व शत्रु से मुक्ति देने वाला मोक्ष प्रदाता ग्रह का फल देगा। ऐसा व्यक्ति तीर्थ यात्रा करने हेतु परोपकार व धार्मिक कार्य में धन खर्च करने हेतु लालायित रहेगा।

 

निशानी- जातक को नर सन्तति अधिक होगी।

दशा-यदि अन्य दुष्टग्रह साथ न हों तो केतु की दशा शुभ फल देगी। केतु की दशा में जातक धनवान होगा।

केतु का अन्य ग्रहों से संबंध

 

1. केतु+सूर्य- जातक भौतिक सुख संसाधनों की प्राप्ति में बाधा महसूस करेगा।

2. केतु+चन्द्र- जातक को परिजनों से लाभ नहीं होता ।

3. केतु + मंगल-पत्नी से विवाद, ससुराल से अनबन रहेगी।

4. केतु + बुध-सन्तति की उन्नति की चिन्ता सताती रहेगी।

5. केतु + बृहस्पति- गुप्त रोग, गुप्त चिन्ता परेशान करती रहेगी।

6. केतु + शुक्र- जातक को परिश्रम का लाभ नहीं मिलेगा।

7. केतु+ शनि- भाग्योदय हेतु जातक को काफी संघर्ष करना पड़ेगा।

 

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