वृष लग्न में केतु की स्थिति षष्ठ स्थान में

वृष लग्न में केतु की स्थिति षष्ठ स्थान में

राहु और केतु दोनों छायाग्रह हैं, पापग्रह हैं, अंधेरे के प्रतीक हैं और सूर्य, चन्द्र के शत्रु है। राहु राक्षस का सिर है, सर्प का मुख है, अतः ज्यादा डरावना व घातक है। जबकि केतु राक्षस का धड़ है, सर्प की पूंछ अतः ज्यादा घातक नहीं है अपितु केतु के एक हाथ में ध्वजा है, जो कीर्ति का प्रतीक है। इस सूक्ष्म अन्तर को हमें समझना होगा तभी फलादेश में सूक्ष्मता आएगी। राहु जिस घर (भाव) में होता है। उसका नाश करता है

जबकि केतु जिस घर (भाव) में होगा उसके प्रति जातक की महत्त्वाकांक्षा (भूख) बढ़ा देती है। वृष लग्न में केतु लग्नेश शुक्र से शत्रु भाव रखता है। केतु यहां छठे स्थान में तुला राशि का होगा। तुला राशि केतु की मित्र राशि है। ऐसा जातक शत्रु व रोग से भयग्रस्त रहेगा। स्वस्थ शरीर की कामना, निरोग रहने की भावना, दीर्घायु प्राप्ति की इच्छा प्रबल रहेगी। छठे भाव में पाप ग्रह ज्यादा अशुभ फल नहीं देते।

 

निशानी- जातक परदेश में रहने वाला होगा। उसे कुत्ते के या किसी अन्य जानवर के काटने का भय रहेगा।

 

दशा-केतु की दशा मध्यम (मिश्रित) फलकारी होगी।

 

केतु का अन्य ग्रहों से संबंध

 

1. केतु + सूर्य- जातक के माता-पिता बीमार रहेंगे।

2. केतु+चन्द्र - जातक के भाई जातक के प्रति उदासीन रहेंगे।

3. केतु+मंगल - जातक का गृहस्थ जीवन सुखमय नहीं होगा।

4. केतु + बुध - जातक को प्रथम सन्तति हाथ नहीं लगेगी।

5. केतु+बृहस्पति - जातक का प्रथम सन्तति का गर्भ स्राव हो जाएगा। बृहस्पति कृपा से, पूजा-पाठ से पुत्र होगा।

6. केतु + शुक्र - परिश्रम का वांछित लाभ नहीं मिलेगा। परिश्रम विशेष करना पड़ेगा।

7. केतु+शनि- भाग्योदय हेतु, आगे बढ़ने के लिए निरन्तर रुकावटों का सामना करना पड़ेगा।

 

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