वृष लग्न में केतु की स्थिति सप्तम स्थान में

वृष लग्न में केतु की स्थिति सप्तम स्थान में

 

राहु और केतु दोनों छायाग्रह हैं, पापग्रह हैं, अंधेरे के प्रतीक हैं और सूर्य, चन्द्र के शत्रु हैं। पर राहु राक्षस का सिर है, सर्प का मुख है अतः ज्यादा डरावना व घातक है जबकि केतु राक्षस का धड़ है, सर्प की पूंछ अतः ज्यादा घातक नहीं है अपितु केतु के एक हाथ में ध्वजा है, जो कीर्ति का प्रतीक है इस सूक्ष्म अन्तर को हमें समझना होगा तभी फलादेश में सूक्ष्मता आएगी। राहु जिस घर (भाव) में होता है उसका नाश करता है जबकि केतु जिस घर (भाव) में होगा 10 उसके प्रति जातक की महत्त्वाकांक्षा (भूख) बढ़ा देती है।

 

वृषभ लग्न में केतु लग्नेश शुक्र से शत्रु भाव रखता है। केतु यहां सप्तम स्थान में वृश्चिक राशि का होगा। वृश्चिक राशि में केतु उच्च राशि का होता है। केतु की यह स्थिति जातक के जीवन में गृहस्थ सुख के प्रति ललक बढ़ाएगी। जातक कामी होगा विषय वासना भोग-विलास की इच्छा प्रतिपल रहेगी। काम सन्तुष्टि इच्छा बनी रहेगी पर काम के प्रति तृप्ति नहीं हो पाएगी।

 

निशानी- जितने बहन भाई होंगे, उतनी सन्तानें होंगी। दशा-केतु की दशा-अंतर्दशा उन्नतिदायक होगी।

 

केतु का अन्य ग्रहों से संबंध

 

1. केतु सूर्य- पत्नी के शरीर में रोग रहेगा। मानसिक अशान्ति रहेगी।

2. केतु-चन्द्र- जिससे प्रेम करेंगे वह स्त्री धोखा देगी। स्त्री से मित्रता हानिकारक रहेगी।

3. केतु मंगल पहली पत्नी का शोक दूसरी भी रोगी होगी।

4. केतु + बुध- जातक धनी होगा। प्रजावान होगा। ज्ञानी होगा। चेष्टावान होगा।

5. केतु+बृहस्पति गृहस्थ सुख में कोई न कोई व्यवधान बना रहेगा।

6. केतु + शुक्र दो स्त्रियों से सम्पर्क एक समय में रहेगा।

7. केतु शनि - द्विभार्या योग, दूसरी पत्नी ठीक होगी।

 

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