वृष लग्न में केतु की स्थिति अष्टम स्थान में

वृष लग्न में केतु की स्थिति अष्टम स्थान में

 

राहु और केतु दोनों छायाग्रह हैं, पापग्रह हैं, अंधेरे के प्रतीक हैं और सूर्य, चन्द्र के शत्रु हैं। राहु राक्षस का सिर है, सर्प का मुख है, अतः ज्यादा डरावना व घातक है जबकि केतु राक्षस का धड़ है, सर्प की पूंछ अत: ज्यादा घातक नहीं है अपितु केतु के एक हाथ में ध्वजा है, जो कीर्ति का प्रतीक है। इस सूक्ष्म अन्तर को हमें समझना होगा तभी फलादेश में सूक्ष्मता आएगी। राहु जिस घर (भाव) में होता है। उसका नाश करता है जबकि केतु जिस घर (भाव) में होगा उसके प्रति जातक की महत्त्वाकांक्षा (भूख बढ़ा देता है।

 

वृष लग्न में केतु लग्नेश शुक से शत्रु भाव रखता है। केतु यहां अष्टम स्थान में धनु राशि का होगा। धनु राशि में केतु स्वगृही माना गया है। ऐसे जातक को शत्रु रोग के प्रति भय बना रहेगा। स्वस्थ शरीर की कामना, निरोग रहने की भावना, दीर्घायु प्राप्ति की इच्छा प्रबल रहेगी।

 

निशानी-द्विभार्या ( दो विवाह) का योग प्रबल है अथवा जातक का भाई निसन्तान होगा।

 

दशा-केतु की दशा अंतर्दशा अनिष्ट फल देगी। केतु का अन्य ग्रहों से संबंध

 

1. केतु सूर्य - जातक को पिता का सुख कम रहेगा। वाहन दुर्घटना का भय रहेगा। नौकर वफादार नहीं होंगे।

2. केतु + चन्द्र- जातक को माता का सुख कम रहेगा। भाई बहन भी जातक के सहायक नहीं होंगे।

3. केतु मंगल जातक का गृहस्थ जीवन कलहपूर्ण होगा।

4. केतु-बुध- जातक की सन्तति जातक की आज्ञा में न होगी। 5. केतु बृहस्पति- जातक गुप्त बीमारी, गुप्तरोग से ग्रसित होगा।

6. केतु + शुक्र- जातक के स्वयं के शरीर में रोग रहेगा। जातक के वीर्य का क्षरण होता रहेगा।

7. केतु-शनि भाग्योदय हेतु संघर्ष की स्थिति रहेगी।

 

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