सà¥à¤¥à¥‚ल रूप में 'मदà¥à¤¯' का अरà¥à¤¥ 'सà¥à¤°à¤¾' से है। तनà¥à¤¤à¥à¤°' मदà¥à¤¯ का पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¨à¤¿à¤§à¤¿ दà¥à¤°à¤µà¥à¤¯ अषà¥à¤Ÿ गंध है। 'परशà¥à¤°à¤¾à¤® कलà¥à¤ª सूतà¥à¤° के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° मदà¥à¤¯ सेवन के समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ में उसके औचितà¥à¤¯ पर विचार कर लेना चाहिà¤à¥¤ पंचमकार आननà¥à¤¦ के वà¥à¤¯à¤‚जक माने जाते हैं। अतः मदà¥à¤¯ à¤à¥€ इसी का à¤à¤• अंग है। तनà¥à¤¤à¥à¤° के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° मदà¥à¤¯ में अघोलिखित विशेषताà¤à¤‚ होनी चाहिठ1. वह किसी पेड़-पौधे या वनसà¥à¤ªà¤¤à¤¿ आदि से निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ हो। 2. गà¥à¤¡à¤¼ से बनी हो । 3. औषधियों या अनà¥à¤¨à¥‹à¤‚ को पीसकर बनायी गयी हो। 4. वृकà¥à¤·à¥‹à¤‚ की छाल से बनी हो। 5. फूलों से बनी हो। (महà¥à¤µà¤¾ के फूल à¤à¥€ इसमें समà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¿à¤¤ हैं।) 6. मदà¥à¤¯ à¤à¤¸à¥€ हो जिसे देखने और पीने से मन पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ हो जाà¤à¥¤ 7. वह नशा न करके आननà¥à¤¦ विहल करने वाली हो । इस समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ में ‘योगिनी तनà¥à¤¤à¥à¤°' में वरà¥à¤£à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° अलग-अलग मिशà¥à¤°à¤£à¥‹à¤‚ को मदà¥à¤¯ के रूप में पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— करने हेतॠअनà¥à¤®à¤¤à¤¿ दी गयी है बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ के लिठगà¥à¤¡à¤¼ और अदरक के रस को सà¥à¤°à¤¾ कहा गया है। वैशà¥à¤¯ के लिà¤- कांसे के पातà¥à¤° में शहद को सà¥à¤°à¤¾ सà¥à¤µà¤°à¥‚प माना गया है कà¥à¤·à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯ के लिà¤- कांसे के पातà¥à¤° में नारियल का जल सà¥à¤°à¤¾ सà¥à¤µà¤°à¥‚प है। "महानिरà¥à¤µà¤¾à¤£ तनà¥à¤¤à¥à¤°" के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° गौड़ी (गà¥à¤¡à¤¼ के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾), पैषà¥à¤Ÿà¥€ (पिषà¥à¤Ÿà¤• के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾) और माधà¥à¤µà¥€ (शहद के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ ) - यह तीन पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की सà¥à¤°à¤¾ ही उतà¥à¤¤à¤® है। यह सà¥à¤°à¤¾ ताड़, खजूर व अनà¥à¤¯ वसà¥à¤¤à¥à¤“ं से बनती है। देश और दà¥à¤°à¤µà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के à¤à¥‡à¤¦ से यह अनेक पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की होती है, जो देवताओं के लिठशोधित होकर उतà¥à¤¤à¤® होती है। अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ इसे शोधित करके देवारà¥à¤šà¤¨ किया जाता है। यह चाहे जिस रूप में और चाहे जिस वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ लायी गयी हो, शोधित होने पर यह सब सिदà¥à¤§à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को देने वाली होती है। इसी गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ में à¤à¤• अनà¥à¤¯ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर (६/१३) कहा गया है कि “बिना शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ के सà¥à¤°à¤¾à¤ªà¤¾à¤¨ करना विष खाने के समान होगा। शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ के अà¤à¤¾à¤µ में साधक को रोगी और अलà¥à¤ªà¤¾à¤¯à¥ होकर शीघà¥à¤° ही को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होना मृतà¥à¤¯à¥ पड़ता है। " साधना काल में सà¥à¤°à¤¾ का सेवन अनà¥à¤·à¥à¤ ान की पूरà¥à¤£à¤¤à¤¾ के लिठकिया जाता है, उसे महा-औषधि के रूप में गà¥à¤°à¤¹à¤£ किया जाता है साथ ही ईषà¥à¤Ÿ को à¤à¥€ समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ किया जाता है। परनà¥à¤¤à¥ उसका पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— करने से पहले उसकी शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ की जाती है। उसे आननà¥à¤¦ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ के लिठनहीं बलà¥à¤•à¤¿ चितà¥à¤¤ की दृढ़ता के लिठपà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— किया जाता है। यदि सà¥à¤°à¤¾à¤ªà¤¾à¤¨ आननà¥à¤¦ के लिठकिया जाठतो साधक को नरकगामी होना पड़ता है। à¤à¤• पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ यहां यह à¤à¥€ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हो सकता है कि मदà¥à¤¯à¤ªà¤¾à¤¨ करने वाले साधक को करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ या अकरà¥à¤¤à¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ तो रहता ही नहीं, फिर वह साधना कà¥à¤¯à¤¾ करेगा? इसके लिठशासà¥à¤¤à¥à¤° निरà¥à¤¦à¥‡à¤¶ देते हैं कि जितनी सà¥à¤°à¤¾ दृषà¥à¤Ÿà¤¿ और मन को विचलित न करे, उतने ही परिमाण में उसका पान करना चाहिà¤à¥¤ इससे अधिक सà¥à¤°à¤¾à¤ªà¤¾à¤¨ को पशà¥à¤ªà¤¾à¤¨ कहा गया है। सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€-साधिकाओं के लिठमदà¥à¤¯à¤ªà¤¾à¤¨ का निषेध करते हà¥à¤ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ केवल उसकी गंध ही गà¥à¤°à¤¹à¤£ करने का निरà¥à¤¦à¥‡à¤¶ à¤à¥€ शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में दिया गया है। इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° कहा जा सकता है कि मदà¥à¤¯à¤ªà¤¾à¤¨ करके, नशे में धà¥à¤¤ होकर साधना में रत होना तनà¥à¤¤à¥à¤° का उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ नहीं है। वासà¥à¤¤à¤µ में संसार में कोई à¤à¥€ दà¥à¤°à¤µà¥à¤¯ अथवा पदारà¥à¤¥ केवल लाà¤à¤ªà¥à¤°à¤¦ अथवा हानिपà¥à¤°à¤¦ नहीं होता। उसका सही अथवा गलत पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— या फिर उसकी मातà¥à¤°à¤¾ का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— ही परिणाम का कारक होता है। विष को यदि विष के रूप में गà¥à¤°à¤¹à¤£ किया जाठतो मृतà¥à¤¯à¥ का कारक बन जाता है परनà¥à¤¤à¥ यदि उसे शोधित करके गà¥à¤°à¤¹à¤£ किया जाà¤à¥¤ तो वह जीवनदायी बन जाता है। योगà¥à¤¯ गà¥à¤°à¥ के सानिधà¥à¤¯ में, विशेष अवसरों पर à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨-à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की सà¥à¤°à¤¾à¤“ं का पान कà¥à¤£à¥à¤¡à¤²à¤¿à¤¨à¥€ जागरण का कारण बन जाता है। जबकि उपयà¥à¤•à¥à¤¤ मारà¥à¤—दरà¥à¤¶à¤• के अà¤à¤¾à¤µ में सà¥à¤«à¥‚रà¥à¤¤à¤¿ और चेतना के सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर साधक को हानि ही उठानी पड़ती है। कà¥à¤£à¥à¤¡à¤²à¤¿à¤¨à¥€ शकà¥à¤¤à¤¿ को जगाने के लिठही उसके मà¥à¤– में सà¥à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ की जाती है। जो इस विदà¥à¤¯à¤¾ में निपà¥à¤£ हैं, वे जानते हैं कि किस चकà¥à¤° के à¤à¥‡à¤¦à¤¨ के लिठकिस वसà¥à¤¤à¥ सà¥à¤°à¤¾ का पान करना चाहिà¤à¥¤ की परनà¥à¤¤à¥ पशà¥à¤à¤¾à¤µ के साधक के लिठमदà¥à¤¯ और मांस को सूचना à¤à¥€ वरà¥à¤œà¤¿à¤¤ है। मैंने पà¥à¤°à¤¥à¤® अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ में सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ किया है कि वेदाचार, वैषà¥à¤£à¤µà¤¾à¤šà¤¾à¤°, शैवाचार और दकà¥à¤·à¤¿à¤£à¤¾à¤šà¤¾à¤°- ये चारों पशॠà¤à¤¾à¤µ कहलाते हैं। इनमें उतà¥à¤¤à¥€à¤°à¥à¤£ होने पर ही साधक वीर à¤à¤¾à¤µ में और फिर दिवà¥à¤¯ à¤à¤¾à¤µ में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करता है। पशà¥-à¤à¤¾à¤µ के सà¥à¤¤à¤° वाले साधक के लिठपंचमकारों का पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤•à¥à¤· सà¥à¤¥à¥‚ल पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— पूरà¥à¤£à¤¤à¤¯à¤¾ वरà¥à¤œà¤¿à¤¤ है, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि इस सà¥à¤¤à¤° तक उसकी सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ परिपकà¥à¤µ नहीं हो पाती। à¤à¤¸à¥‡ साधक को मांस-मदिरा के दरà¥à¤¶à¤¨ à¤à¥€ नहीं करने चाहिà¤à¥¤ कौलिक साधक की साधना में इनका पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— दूसरे सà¥à¤¤à¤° पर होता है। साधक इस सà¥à¤¤à¤° पर पूरà¥à¤£ परिपकà¥à¤µ हो जाता है अतः उसके लिठये पदारà¥à¤¥ महाफलपà¥à¤°à¤¦ माने जाते हैं। अब हम मदà¥à¤¯ के सूकà¥à¤·à¥à¤® ततà¥à¤µ पर दृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤ªà¤¾à¤¤ करते हैं�
सà¥à¤¥à¥‚ल रूप में 'मदà¥à¤¯' का अरà¥à¤¥ 'सà¥à¤°à¤¾' से है। तनà¥à¤¤à¥à¤°' मदà¥à¤¯ का पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¨à¤¿à¤§à¤¿ दà¥à¤°à¤µà¥à¤¯ अषà¥à¤Ÿ गंध है। 'परशà¥à¤°à¤¾à¤® कलà¥à¤ª सूतà¥à¤° के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° मदà¥à¤¯ सेवन के समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ में उसके औचितà¥à¤¯ पर विचार कर लेना चाहिà¤à¥¤ पंचमकार आननà¥à¤¦ के वà¥à¤¯à¤‚जक माने जाते हैं। अतः मदà¥à¤¯ à¤à¥€ इसी का à¤à¤• अंग है। तनà¥à¤¤à¥à¤° के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° मदà¥à¤¯ में अघोलिखित विशेषताà¤à¤‚ होनी चाहिà¤
1. वह किसी पेड़-पौधे या वनसà¥à¤ªà¤¤à¤¿ आदि से निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ हो।
2. गà¥à¤¡à¤¼ से बनी हो ।
3. औषधियों या अनà¥à¤¨à¥‹à¤‚ को पीसकर बनायी गयी हो।
4. वृकà¥à¤·à¥‹à¤‚ की छाल से बनी हो।
5. फूलों से बनी हो। (महà¥à¤µà¤¾ के फूल à¤à¥€ इसमें समà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¿à¤¤ हैं।)
6. मदà¥à¤¯ à¤à¤¸à¥€ हो जिसे देखने और पीने से मन पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ हो जाà¤à¥¤
7. वह नशा न करके आननà¥à¤¦ विहल करने वाली हो ।
इस समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ में ‘योगिनी तनà¥à¤¤à¥à¤°' में वरà¥à¤£à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° अलग-अलग मिशà¥à¤°à¤£à¥‹à¤‚ को मदà¥à¤¯ के रूप में पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— करने हेतॠअनà¥à¤®à¤¤à¤¿ दी गयी है बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ के लिठगà¥à¤¡à¤¼ और अदरक के रस को सà¥à¤°à¤¾ कहा गया है।
वैशà¥à¤¯ के लिà¤- कांसे के पातà¥à¤° में शहद को सà¥à¤°à¤¾ सà¥à¤µà¤°à¥‚प माना गया है
कà¥à¤·à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯ के लिà¤- कांसे के पातà¥à¤° में नारियल का जल सà¥à¤°à¤¾ सà¥à¤µà¤°à¥‚प है।
"महानिरà¥à¤µà¤¾à¤£ तनà¥à¤¤à¥à¤°" के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° गौड़ी (गà¥à¤¡à¤¼ के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾), पैषà¥à¤Ÿà¥€ (पिषà¥à¤Ÿà¤• के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾) और माधà¥à¤µà¥€ (शहद के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ ) - यह तीन पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की सà¥à¤°à¤¾ ही उतà¥à¤¤à¤® है। यह सà¥à¤°à¤¾ ताड़, खजूर व अनà¥à¤¯ वसà¥à¤¤à¥à¤“ं से बनती है। देश और दà¥à¤°à¤µà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के à¤à¥‡à¤¦ से यह अनेक पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की होती है, जो देवताओं के लिठशोधित होकर उतà¥à¤¤à¤® होती है। अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ इसे शोधित करके देवारà¥à¤šà¤¨ किया जाता है। यह चाहे जिस रूप में और चाहे जिस वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ लायी गयी हो, शोधित होने पर यह सब सिदà¥à¤§à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को देने वाली होती है। इसी गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ में à¤à¤• अनà¥à¤¯ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर (६/१३) कहा गया है कि “बिना शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ के सà¥à¤°à¤¾à¤ªà¤¾à¤¨ करना विष खाने के समान होगा। शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ के अà¤à¤¾à¤µ में साधक को रोगी और अलà¥à¤ªà¤¾à¤¯à¥ होकर शीघà¥à¤° ही को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होना मृतà¥à¤¯à¥ पड़ता है। "
साधना काल में सà¥à¤°à¤¾ का सेवन अनà¥à¤·à¥à¤ ान की पूरà¥à¤£à¤¤à¤¾ के लिठकिया जाता है, उसे महा-औषधि के रूप में गà¥à¤°à¤¹à¤£ किया जाता है साथ ही ईषà¥à¤Ÿ को à¤à¥€ समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ किया जाता है। परनà¥à¤¤à¥ उसका पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— करने से पहले उसकी शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ की जाती है। उसे आननà¥à¤¦ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ के लिठनहीं बलà¥à¤•à¤¿ चितà¥à¤¤ की दृढ़ता के लिठपà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— किया जाता है। यदि सà¥à¤°à¤¾à¤ªà¤¾à¤¨ आननà¥à¤¦ के लिठकिया जाठतो साधक को नरकगामी होना पड़ता है।
à¤à¤• पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ यहां यह à¤à¥€ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हो सकता है कि मदà¥à¤¯à¤ªà¤¾à¤¨ करने वाले साधक को करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ या अकरà¥à¤¤à¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ तो रहता ही नहीं, फिर वह साधना कà¥à¤¯à¤¾ करेगा? इसके लिठशासà¥à¤¤à¥à¤° निरà¥à¤¦à¥‡à¤¶ देते हैं कि जितनी सà¥à¤°à¤¾ दृषà¥à¤Ÿà¤¿ और मन को विचलित न करे, उतने ही परिमाण में उसका पान करना चाहिà¤à¥¤ इससे अधिक सà¥à¤°à¤¾à¤ªà¤¾à¤¨ को पशà¥à¤ªà¤¾à¤¨ कहा गया है। सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€-साधिकाओं के लिठमदà¥à¤¯à¤ªà¤¾à¤¨ का निषेध करते हà¥à¤ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ केवल उसकी गंध ही गà¥à¤°à¤¹à¤£ करने का निरà¥à¤¦à¥‡à¤¶ à¤à¥€ शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में दिया गया है।
इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° कहा जा सकता है कि मदà¥à¤¯à¤ªà¤¾à¤¨ करके, नशे में धà¥à¤¤ होकर साधना में रत होना तनà¥à¤¤à¥à¤° का उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ नहीं है। वासà¥à¤¤à¤µ में संसार में कोई à¤à¥€ दà¥à¤°à¤µà¥à¤¯ अथवा पदारà¥à¤¥ केवल लाà¤à¤ªà¥à¤°à¤¦ अथवा हानिपà¥à¤°à¤¦ नहीं होता। उसका सही अथवा गलत पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— या फिर उसकी मातà¥à¤°à¤¾ का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— ही परिणाम का कारक होता है। विष को यदि विष के रूप में गà¥à¤°à¤¹à¤£ किया जाठतो मृतà¥à¤¯à¥ का कारक बन जाता है परनà¥à¤¤à¥ यदि उसे शोधित करके गà¥à¤°à¤¹à¤£ किया जाà¤à¥¤ तो वह जीवनदायी बन जाता है। योगà¥à¤¯ गà¥à¤°à¥ के सानिधà¥à¤¯ में, विशेष अवसरों पर à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨-à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की सà¥à¤°à¤¾à¤“ं का पान कà¥à¤£à¥à¤¡à¤²à¤¿à¤¨à¥€ जागरण का कारण बन जाता है। जबकि उपयà¥à¤•à¥à¤¤ मारà¥à¤—दरà¥à¤¶à¤• के अà¤à¤¾à¤µ में सà¥à¤«à¥‚रà¥à¤¤à¤¿ और चेतना के सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर साधक को हानि ही उठानी पड़ती है। कà¥à¤£à¥à¤¡à¤²à¤¿à¤¨à¥€ शकà¥à¤¤à¤¿ को जगाने के लिठही उसके मà¥à¤– में सà¥à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ की जाती है। जो इस विदà¥à¤¯à¤¾ में निपà¥à¤£ हैं, वे जानते हैं कि किस चकà¥à¤° के à¤à¥‡à¤¦à¤¨ के लिठकिस वसà¥à¤¤à¥ सà¥à¤°à¤¾ का पान करना चाहिà¤à¥¤ की
परनà¥à¤¤à¥ पशà¥à¤à¤¾à¤µ के साधक के लिठमदà¥à¤¯ और मांस को सूचना à¤à¥€ वरà¥à¤œà¤¿à¤¤ है। मैंने पà¥à¤°à¤¥à¤® अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ में सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ किया है कि वेदाचार, वैषà¥à¤£à¤µà¤¾à¤šà¤¾à¤°, शैवाचार और दकà¥à¤·à¤¿à¤£à¤¾à¤šà¤¾à¤°- ये चारों पशॠà¤à¤¾à¤µ कहलाते हैं। इनमें उतà¥à¤¤à¥€à¤°à¥à¤£ होने पर ही साधक वीर à¤à¤¾à¤µ में और फिर दिवà¥à¤¯ à¤à¤¾à¤µ में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करता है। पशà¥-à¤à¤¾à¤µ के सà¥à¤¤à¤° वाले साधक के लिठपंचमकारों का पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤•à¥à¤· सà¥à¤¥à¥‚ल पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— पूरà¥à¤£à¤¤à¤¯à¤¾ वरà¥à¤œà¤¿à¤¤ है, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि इस सà¥à¤¤à¤° तक उसकी सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ परिपकà¥à¤µ नहीं हो पाती। à¤à¤¸à¥‡ साधक को मांस-मदिरा के दरà¥à¤¶à¤¨ à¤à¥€ नहीं करने चाहिà¤à¥¤ कौलिक साधक की साधना में इनका पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— दूसरे सà¥à¤¤à¤° पर होता है। साधक इस सà¥à¤¤à¤° पर पूरà¥à¤£ परिपकà¥à¤µ हो जाता है अतः उसके लिठये पदारà¥à¤¥ महाफलपà¥à¤°à¤¦ माने जाते हैं।
अब हम मदà¥à¤¯ के सूकà¥à¤·à¥à¤® ततà¥à¤µ पर दृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤ªà¤¾à¤¤ करते हैं�