बालि द्वारा रावण की पराजय भाग दो

बालि द्वारा रावण की पराजय भाग दो.

वे श्रेष्ठ राक्षस बहुत प्रयत्न करने पर भी वाली के पास तक न पहुँच सके। उनकी भुजाओं और जाँघों के वेग से उत्पन्न हुई वायु के थपेड़ों से थक कर वे खड़े हो गये।

वाली के मार्ग से उड़ते हुए बड़े-बड़े पर्वत भी हट जाते थे; फिर रक्त-मांसमय शरीर धारण करने वाला और जीवन की रक्षा चाहने वाला प्राणी उनके मार्ग से हट जाय इसके लिये तो कहना ही क्या है।

जितनी देर में वाली समुद्रों तक पहुँचते थे, उतनी देर में तीव्र गामी पक्षियों के समूह भी नहीं पहुँच पाते थे। उन महा वेगशाली वानर राज ने क्रमशः सभी समुद्रों के तट पर पहुँच कर सन्ध्या-वन्दन किया ।।

समुद्रों की यात्रा करते हुए आकाश चारियों में श्रेष्ठ वाली की सभी खेचर प्राणी पूजा एवं प्रशं करते थे। वे रावण को बगल में दबाये हुए पश्चिम समुद्र के तट पर आये। 

वहाँ स्नान, संध्योपासना और जप करके वे वानर वीर दशानन को लिये दिये उत्तर समुद्र के तट पर पहुँचे।

वायु और मन के समान वेगवाले वे महावानर वाली कई सहस्र योजन तक रावण को ढोते रहे। फिर अपने उस शत्रु के साथ ही वे उत्तर समुद्र के किनारे गये।

रावण भी कहीं ना कहीं समझ गया था की बाली के बारे में मैंने जो सुना है मेरी आदिशक्ति बाली में पहुंच चुकी है इसलिए अब मैं शक्ति ही नहीं फिर भी रावण अपने आप को छुड़ाने की कोशिश करता रहा

उत्तर सागर के तट पर सन्ध्योपासना करके दशानन का भार वहन करते हुए वाली पूर्व दिशावर्ती महासागर के किनारे गये।

वहाँ भी सन्ध्योपासना सम्पन्न करके वे इन्द्र पुत्र वानर राज वाली दशमुख रावण को बगल में दबाये फिर किष्किन्धा पुरी के निकट आये।

इस तरह चारों समुद्रों में सन्ध्योपासना का कार्य पूरा करके रावण को ढोने के कारण थके हुए वानरराज वाली किष्किन्धा के उपवन में आ पहुँचे।
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