पिछले और अगले जन्म का ज्ञान

भारतीय ज्योतिष के प्रवर्तक महर्षि पराशर के प्राचीन ग्रंथ ‘बृहत पराशर à¤¹à¥‹à¤°à¤¾ शास्त्र’ के अनुसार-

 

‘जन्मकालिक ग्रह स्थिति में सूर्य और चन्द्र में से जो बली हो, वह यदि गुरु के त्रयंश (द्रेष्काण) में स्थित हो तो जातक देवलोक (स्वर्ग) से आया है ऐसा समझना चाहिए। यदि वह शुक्र या चंद्र के द्रेष्काण में हो तो पितृलोक से सूर्य या मंगल के द्रेष्काण में हो तो मृत्युलोक से और यदि वह बुध या शनि के द्रेष्काण में हो तो नरक लोक से आया है ऐसा समझना चाहिए।’ 

 

मृत्योपरांत गन्तव्य स्थान के बारे में महर्षि पराशर कहते हैं।

 

लग्न से षष्ठ सप्तम् या अष्टम् भाव में गुरु हो तो देवलोक शुक्र या चन्द्र हो तो पितृलोक रवि या मंगल हो तो भूलोक और बुध या शनि हो तो अधोलोक को प्राप्त करता है। यदि उक्त भावों में एक से अधिक ग्रह हो तो उनमें से जो बली हो उसके लोक को जाता है ऐसा समझना चाहिए।

 

यदि भाव 6,7,8 में कोई ग्रह नहीं हो तो षष्ठ और अष्टम् भाव के द्रेष्काणपति में जो बलवान हो प्राणी मरण के बाद उस ग्रह के लोक में जाता है ऐसा समझना चाहिए।

 

उस ग्रह की उच्चादि स्थिति से मरणोपरांत लोक में जातक को उत्तम मध्यम या अधम स्थान प्राप्त होता है। जैसे यदि वह द्रेष्काणपति उच्च का हो तो उस ग्रह के लोक में प्राणी को श्रेष्ठ स्थान नीच का हो तो निम्न स्थान और उच्च नीच के मध्य में हो तो मध्य स्तर का स्थान प्राप्त होता है।

 

यदि मरण काल में लग्न में गुरु हो तो जातक देवलोक, सूर्य या मंगल हो तो मृत्युलोक चंद्र या शुक्र हो तो पितृलोक और बुध या शनि हो तो नरक लोक हो जाता है। 

 

जब जन्मकुंडली में शुभगतिप्रद ग्रह स्थिति हो और मरण काल में कुंडली में अशुभ स्थिति में हो तो जातक मध्यलोक को जाता है। जन्म और मरण काल कुंडली दोनों में ग्रह स्थिति अशुभ हो तो जातक अधोगति पाता है।

 

आचार्य मंत्रेश्वर ने अपने ग्रंथ फलदीपिका में द्वादश भाव और द्वादशेश को प्राथमिकता देते हुए बताया है कि यदि द्वादशेश उच्च का हो, अपने मित्र के घर में हो, शुभ ग्रह के वर्ग में हो, या शुभ ग्रह के साथ हो तो मनुष्य मृत्योपरांत स्वर्ग को जाता है।

 

विपरीत स्थिति में नरक पाता है। यदि द्वादश भाव में शीर्षोदय राशि (सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक या कुंभ) हो तो जातक स्वर्ग जाता है, और यदि पृष्ठोदय राशि (मेष, वृष, कर्क, धनु या मकर) हो तो नरक को प्राप्त होता है।

 

जो ग्रह द्वादशेश के साथ हो तो या द्वादश भाव में हो, या द्वादश भाव के नवमांश में हो, इससे भी मृत्योपरांत गति का ज्ञान होता है।

 

यदि यह ग्रह सूर्य या चन्द्र हो तो कैलाश शुक्र हो तो स्वर्ग, मंगल हो तो पृथ्वी लोक, बुध हो तो वैकुंठ, शनि हो तो यम लोक और बृहस्पति हो तो ब्रह्म लोक को जाता है। यदि राहु हो तो किसी दूसरे देश और यदि केतु हो तो नरक को जाता है।

 

यहां ध्यान देने की बात है कि आचार्य मंत्रेश्वर ने बुध को वैकुंठ का कारक बताया है तथा राहु और केतु को भी गणना में लिया है। साथ ही उन्होंने नवमेश और पंचमेश से भी पिछले और अगले जन्म के देश दिशा जाति इत्यादि पर प्रकाश डाला है। 

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