नर्क जाने के योग कुंडली में

नरक प्राप्ति योग

बारहवें भाव का स्वामी पाप षष्ठांश में हो और उसे पापी ग्रह देखते हों तो प्राणी नरक में जाता है। (फल दीपिका)।

बारहवें भाव में यदि राहु, गुलिका और अष्टमेश हो तो जातक नरक पाता है। (जातक पारिजात)

बारहवें भाव में मंगल, सूर्य, शनि व राहु हों अथवा द्वादशेश सूर्य के साथ हो तो मृत्योपरांत नरक मिलता है। (बृहत् पराशर होरा शास्त्र)

यदि बारहवें भाव में शनि राहु या केतु अष्टमेश के साथ हो तब भी नरक की प्राप्ति होती है। (जातक पारिजात)

ऊपर वर्णित ग्रह योग प्रारब्ध के अनुरूप मनुष्य के अगले जन्म की ओर अंकित करते हैं। फिर भी वह इसी जन्म में एकनिष्ठ भाव से परमात्मा की शरण में जाकर अपने पूर्वार्जित कर्म-फल को नष्ट कर जन्म-मृत्यु के चक्र से छुटकारा पा सकता है।

 

इसका आश्वासन योगवान श्री कृष्ण ने गीता के 18वें अध्याय के 66वें श्लोक में दिया है-

 

‘संपूर्ण धर्मों का अर्थात् संपूर्ण कर्तव्य कर्मों को मुझ में अर्पितकर तू केवल एक मुझ सर्वशक्तिमान सर्वोधार परमेश्वर की शरण में आजा। मैं तुझे संपूर्ण पापों से मुक्त कर दूंगा तू शोक मत कर।’

 

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