वरुण मुद्रा साधना

वरुण मुद्रा कनिष्ठा (लघ्वी स्वल्पा, रत्नी अन्त्यजा) और अंगूठा (अंगुष्ठ- ज्येष्ठा, (वृद्धा-भू पूजक) के अग्रभाग को मिलाने से बनती है। इसका सम्बन्ध स्वाधिष्ठान और मणिपूरक चक्र और पदमों से है। वरुण मुद्रा के द्वारा जल तत्व को शक्तिवान बनाया जाता है। जिससे जल की कमी से होने वाले सभी रोग नष्ट होते हैं। रक्त विकार होने पर शरीर में रूखापन आ जाता है। खिंचाव होने लगता है। शरीर में दुःखन (दर्द) पैदा हो जाता है। वरुण मुद्रा का सतत् अभ्यास इन सब रोगों को शान्त करता है।

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