प्राण मुद्रा साधना

प्राण मुद्रा कनिष्ठिका और अनामिका अंगुलियों को अंगूठे के अग्रभाग से मिला देने से प्राण मुद्रा बनती है। यह मुद्रा प्राणदायिनी शक्ति का मानव शरीर में संचार करती है। प्राण शक्ति का ह्रास होने पर मनुष्य अनेक रोगों में ग्रस्त हो जाता है। प्राण मुद्रा के द्वारा जल तत्व और पृथ्वी तत्व तथा अग्नि तत्व का मिलन होता है। जैसे बाह्य जगत् में पृथ्वी, जल और ऊष्मा के मिलन से अनेक प्रकार की पैदावार उगती है। अनेक रंग बिरंगे फूल खिलते हैं। इसी प्रकार प्राण मुद्रा में शरीर हर प्रकार स्वस्थ रहता है। प्राण मुद्रा का अभ्यास कोई भी मानव, स्त्री रोगी और निरोगी स्वेच्छापूर्वक स्वतन्त्ररूप से कर सकता है। प्राण मुद्रा के करने से नेत्रों को सुख मिलता है, बल मिलता है तथा नेत्र ज्योति बढ़ती है। प्राण मुद्रा का संचालन मूलाधार चक्र, मणिपूरक और अनाहद चक्रों से होता है।

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