वायु मुद्रा साधना

वायु मुद्रा तर्जनी अंगुली को अंगूठे के मूल में लगाकर अंगूठे से हल्का दबाकर रखने से वायु मुद्रा बनती है। वायु तत्व को अग्नि तत्व से दबाने से वायु तत्व की शक्ति कमजोर हो जाती है इसीलिए इस मुद्रा से बात (वायु) रोग नष्ट होता है। गठिया, कम्पवात, रींगन वाय, वाय शूल, लकवा, अद्धांग वात आदि वात रोग नष्ट होते हैं। किसी भी वायु रोग में २४ मिनट इस मुद्रा को करने से रोग शान्त हो जाता है। तत्काल प्रयोग में इस मुद्रा को ४५ मिनट करे। पुराने रोगों में इस मुद्रा का अभ्यास ४५ मिनट रोज दिन करने से लाभ हो जाता है। दवाई के साथ-साथ करने में कोई डर नहीं। रोग कट जाने पर मुद्रा का अभ्यास छोड़ देना चाहिए अन्यथा हानि होगी। यदि रोग कटने में देर मालूम हो रही हो तो इसके साथ-साथ प्राण मुद्रा भी करनी चाहिए क्योंकि वायु तत्व की शक्ति अधिक घट जाने से हानि हो सकती है। मगर प्राण मुद्रा को साथ-साथ करने से हानि नहीं होगी। कभी-कभी आत्मबल की कमी के कारण शूल होने लगता है उस समय पीड़ा वायु मुद्रा से न जाकर प्राण मुद्रा से दूर होती है। कम्पवात, लकवा, गठिया आदि भयंकर वायु रोगों में इस वायु मुद्रा का अधिकाधिक प्रयोग कराना चाहिए। प्राण मुद्रा भी साथ साथ करवाते रहें। वायु मुद्रा के करने से रोगी के शरीर में वायु तत्व की शक्ति बहुत तेजी से कम होने लगती है। कान तथा पेट का दर्द वायु मुद्रा से नहीं जाएगा क्योंकि वह वायु से होनेवाला दर्द नहीं है। पेट दर्द के लिए प्राण मुद्रा तथा उत्तानपाद आसन करना चाहिए। कान का दर्द शून्य मुद्रा से कुछ ही क्षणों में नष्ट हो जाता है। अत्यधिक जानकारी के लिए संपर्क करें महर्षि राधेय गुरू जी से

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