रावण ने नवग्रह को बंदी बनाया था

रावण ने नवग्रह को बंदी बनाया था यह तो सभी जानते ही है कथा प्रसिद्ध है कि त्रिलोक विजयी रावण के कैद में सारे ग्रह उल्टे लटके हुए थे। रावण की पत्नी मन्दोदरी गर्भवती थी। रावण को एक तेजस्वी पुत्र की कामना थी। ऐसा पुत्र जो अजर, अमर,महान् पराक्रमी एवं शत्रुंजयी हो । पुत्रोत्पत्ति का क्षण नजदीक था। रावण ने सभी ग्रहों को आदेश दे दिया कि अपने-अपने उच्चस्थान में चले जाओ। रावण के अधीन होने के कारण सभी ग्रह अपने-अपने स्वस्थान व उच्चराशि में चले गए। सभी ग्रह चिन्तित थे। अपनी मर्यादा एवं वचन में बंधे हुए थे। सभी ग्रहों ने सोचा हम सैकड़ों वर्षों से रावण की कैद में हैं। यदि इसका पुत्र इससे अधिक दीर्घजीवी एवं पराक्रमी होगा तो हमारा क्या हाल होगा? सभी ग्रहों ने शनि से प्रार्थना की आप कोई ऐसा रास्ता या उपाय बताओ कि हम सभी रावण की कैद से मुक्त हो जाए। शनि ग्रह जन्म से ही चालाक, धूर्त, हठी एवं दुस्साहसी है। शनि कहता कुछ है करता कुछ। लाभ (एकादश) भाव में बैठे शनि ने चुपके से अपनी दाईं टांग बारहवें भाव में डाल दी। ज्योतिष का सर्वमान्य सिद्धान्त है कि बारहवां शनि अकाल मृत्यु देता है। रावण पुत्रोत्सव की खुशी में व्यस्त और मस्त था। उस समय सभी ग्रहों की गणित लंकोदय से होती थी। कुछ समय बाद रावण ने ग्रह स्पष्ट करते हुए मेघनाथ की षोडशवर्गी कुण्डली बनाई। रावण ने ग्रह स्पष्ट के समय पाया कि चलित में शनि बारहवें में चला गया। शनि की यह हरकत, अवज्ञा की यह पराकाष्ठा देखकर रावण को बड़ा क्रोध आया। रावण ने शनि की दाई टांग को पकड़ कर ऐसा पछाड़ा कि शनि की दाई टांग टूट गई और शनि देव को अपनी सिंघस्य के सामने जहां रावण अपने पैर रखता था शनि देव की गलती के कारण रावण ने शनि देव को अपने पैर रखने की जगह लिटा दिया। और उनके दांए पैर पर अपना पैर रखता था ताकि शनि देव दोवारा न भाग सकें| उसी दिन से शनि लंगड़ा हो गया। लंगड़ा होने से धीमे-धीमे चलने लगा।( 'शनैः शनैः चलति इति शनिश्चर') इसी दिन से शनि का नाम शनिश्चर हो गया। यह नौ ग्रहों में सबसे धीमे चलने वाला ग्रह है।एक राशि को भोगने में ढाई वर्ष और बारह राशियों को भोगने में तीस वर्ष का समय लेता है।

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