चक्र-साधना कैसे करे

चक्र-साधना यहां चक्र का तात्पर्य ऊर्जा चक्र से है। इन चक्रों के बारे में हम पूर्व ही सब कुछ बता आये हैं। इसका ध्यान मूलाधार चक्र से लगाया जाता है और आसन ईशान कोण में नैऋत्य की और बैठकर लगाया जाता है। इसके लिए पूर्ण भूमिखण्ड या कक्ष की सीमा रेखा को रेखांकित करके ईशान से नैऋत्य तक एक सीधी रेखा खींचकर इसे चौड़ाई एवं लम्बाई में 8-8 बराबर भागों में बांटा जाता है। फिर केन्द्र में अनाहत चक्र की व्यवस्था करके सभी चक्रों के स्थान का निर्धारण किया जाता है। अब प्रत्येक चक्र का ध्यान प्रत्येक चक्र के स्थान पर बैठकर किया जाता है। मूलाधार से प्रारम्भ किया जाता है और मूलाधार चक्र पर ध्यान को एकाग्र करके इसे प्रकाश कमल के रूप में ध्यानित किया जाता है। जब आंखें बन्द करते ही यह ज्योतिकमल पूर्ण प्रकाशित दिखाई देने लगे, तो इसे मानसिक बल से बायें से दायें घुमाया जाता है। जब यह पूर्ण तीव्रता से नाचने लगे, तब कुछ दिनों तक अभ्यास करके अगले चक्र का ध्यान भूमि के उस चक्र पर बैठकर लगाया जाता है। इसमें भी यही प्रक्रिया अपनायी जाती है। इस प्रकार एक-एक चक्र को गतिशील किया जाता है। विशेष 1. प्रत्येक चक्र के आसन में मुख नैऋत्य की ओर होना चाहिए। 2. चक्र के रंगों का विवरण है, परन्तु आप ज्योतिर्मय कमल के रूप में इनका ध्यान लगायें। प्रत्येक चक्र का रंग स्वयं अनुभूत होगा। 3. ध्यान लगाने में सबसे पहले बायें से दायें पंखुड़ियों पर ध्यान लगाया जाता है, फिर केन्द्र वृत्त पर, फिर मूलाधार के केन्द्रीय देवता पर। 4. सारे ध्यान शरीर के चक्र पर लगाये जाते हैं, न कि भूमि या .कक्ष के चक्र पर । 5. ध्यान चाहे सहस्रार पर लगा रहे हों, प्रतिदिन मूलाधार से ही प्रारम्भ करना होता है। केवल समय कम हो जाता है। क्रम से सभी चक्रों को ध्यानित करने के बाद ही सहस्रार पर ध्यान केन्द्रित करना होता है। 6. तन्त्रशास्त्र में इनके मन्त्र भी बताये गये हैं, किन्तु केवल ध्यान भी इसके लिए पर्याप्त है। 7. प्रतिदिन साधना का अभ्यास प्राणायाम से ही करना होता है। प्राणायाम करते हुए साधनाएं करने से और भी शीघ्र सफलता प्राप्त होती है । 8. ये साधनाएं क्रम से कठिन होती जाती हैं और काफी समय लगता है। एक गृहस्थ के लिए यहीं तक की साधना सर्वमनोकामना पूर्ण करने वाली है। कुंडली जागरण के लिए गुरु देव से संपर्क करने हेतु संपर्क करे @maharishi radhey guru ji

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