कुंडलिनी के सप्त चक्रों का वर्णन

शुषुम्ना नाड़ी की ऊर्जाधारा में कुछ भंवर होते हैं। ये भंवर इसकी ऊर्जाधारा की गति में इड़ा पिंगल के संगम से उत्पन्न होते हैं और ऐसा माना जाता है कि इन सभी बिन्दुओं पर ब्रह्माण्डीय ऊर्जा बिन्दुओं का प्रभाव होता है, इसलिए ये ऊर्जा चक्र बनते हैं। इन ऊर्जा चक्रों की प्रवृत्तियां अलग-अलग विशिष्ट गुणों से युक्त होती हैं। इनकी गति में सामान्यावस्था में सन्तुलन नहीं होता। किसी में कोई चक्र प्रबल होता है, तो किसी में कोई इसी के अनुपात क्रम में व्यक्ति, जीव या पदार्थ के परमाणुओं के गुण व्याप्त होते हैं। मुख्य रूप से इन चक्रों की संख्या नौ है, परन्तु योग तन्त्र की विधियों में सात को ही मुख्य मानते हैं। कुण्डलिनी के सर्प मुख को एक-एक करके इन्हीं चक्रों में प्रविष्ट कराया जाता है। ये चक्र इस प्रकार हैं

1. मूलाधार चक्र

2. स्वाधिष्ठान चक्र

3. मणिपूरक चक्र

4. अनाहत चक्र

5. विशुद्ध चक्र

6. आज्ञा चक्र

7. सहसार चक्र

Share Us On -

Scroll to Top