Swadhisthana, स्वाधिष्ठान चक्र कैसे जागृत करें

फिल्म सच्ची नहीं होती लेकिन उससे जुड़कर आप जो अनुभव करते हैं वह आपके बेहोश जीवन जीने का प्रमाण है। नाटक और मनोरंजन सच नहीं होते। यही Swadhisthana है यह वह चक्र है, जो लिंग मूल से 4 अंगुल ऊपर स्थित है जिसकी 6 पंखुरियां हैं। अगर आपकी ऊर्जा इस चक्र पर ही एकत्रित है तो आपके जीवन में आमोद-प्रमोद, मनोरंजन, घूमना-फिरना और मौज-मस्ती करने की प्रधानता रहेगी। यह सब करते हुए ही आपका जीवन कब व्यतीत हो जाएगा आपको पता भी नहीं चलेगा इसके जाग्रत होने पर क्रूरता, गर्व, आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वास आदि दुर्गणों का नाश होता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए जरूरी है कि उक्त सारे दुर्गुण समाप्त हों तभी सिद्धियां आपका द्वार खटखटाएंगी। * स्वाधिष्ठान चक्र संरचना सुषुम्ना ऊर्जाधारा में दूसरा ऊर्जा चक्र छह दलों वाला कमल है। इन दलों का रंग सिन्दूरी है। यह भी लाल रंग ही है, किन्तु यह मूलाधार की पंखुड़ियों के समान रक्तिम (गहरा लाल) न होकर उससे थोड़ा हल्का लाल है, अर्थात् इसमें कालापन नहीं है। इसका अर्थ यह है कि यह तामसी गुण ही है, परन्तु ये उतना जड़तावादी नहीं है, किन्तु ये जड़ता से युक्त ही है और इनका मुख भी अधोगामी ही है, तथापि ये मूलाधार के दलों की अपेक्षा कुछ उन्नत हैं। योग में इन्हें जड़तावादी प्रवृत्तियां मात्र माना गया है, किन्तु तन्त्र में रक्तिम वर्ण को पसन्द करने वाली देवियों के रूप में इनकी व्याख्या की गयी है। दोनों का तात्पर्य एक ही है। पाठकों को भ्रम हो सकता है कि इन देवियों के नाम क्या हैं? यहां हम स्पष्ट करना चाहेंगे। कि इनके विवरण में जाने की आवश्यकता नहीं है। कुण्डलिनी की साधना में इन दलों की आकृति, वर्ण एवं बीजमन्त्र से ही काम चल जाता है। हां, मुख्य पद्म (कमल) के देवी-देवता के बारे में जान लेना आवश्यक है; क्योंकि इन गुणों को जानकर ही इन पर ध्यान या तन्त्र विधि की शक्ति आजमाना आवश्यक है। स्वाधिष्ठान चक्र का धरातल आकाश के रंग का है। उसमें चन्द्रमा के कटे हुए वलय की भांति जलवर्ण का अर्द्धचन्द्र है। इसमें जल भरा हुआ है। इस चन्द्र में भी पद्मदल बने हुए हैं। यह मूलाधार चक्र से कुछ ऊपर होता है। थोड़ा-सा ध्यान की एकाग्रता का अभ्यास करके मूलाधार से चलने वाली तरंगों या नाभिस्थल से नीचे की ओर जाने वाली ऊर्जा तरंगों को अनुभव किया जा सकता है। इन ऊर्जा तरंगों का अनुभव होते ही मूलाधार के ऊपर के इस चक्र के वास्तविक स्थान की अनुभूति होने लगती है। यह त्रिकास्थि जोड़ के ऊपर होता है। स्वाधिष्ठान के देवी-देवता तन्त्र विवरण तन्त्र विवरण शाक्त-तन्त्र के अनुसार केन्द्र में प्रस्फुटित (विकसित) शिवलिंग है और चन्द्रकला में राकिणी देवी स्थित हैं। ये नीलापन लिये हुए श्यामवर्ण की हैं। इनकी चारों भुजायें ऊपर उठी हैं। इनमें विभिन्न प्रकार के अस्त्र, शूल, कुल्हाड़ी, कमल और डमरु हैं। उनकी बायीं नासिका रन्ध्र से रुधिर (रक्त) बह रहा है। ये दोहरे कमल पर आसीन हैं। इनके दांत भयानक हैं और इन्हें चावल पसन्द हैं। इसके अनुसार दलों में दुर्गा हैं। सिद्धि लाभ अहंकार, मोह, ,तृष्णा, उत्तेजना, जड़ता के पाश कुछ हद तक कट जाते हैं। भोग की शक्ति में वृद्धि होती है, अर्थात् भोग में धैर्य बढ़ता है, इससे भोगकाल लम्बा एवं आनन्ददायक हो जाता है। भावुकता, दया, प्रेम, मृदुता आदि भाव विकसित होते हैं। कामशक्ति में वृद्धि होती है। ऐसे साधक से कामिनियां सम्भोग करके सब प्रकार से सन्तुष्ट होती हैं। स्वास्थ्य एवं संकल्प की वृद्धि होती है। बाधाओं को उखाड़ फेंकने का साहस, सहनशीलता एवं कोमलता के भाव की वृद्धि होती है। स्वाधिष्ठान चक्र के देवी देवताओं के लिए मंत्र प्राप्ति हेतु आप संपर्क करें

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