मणिपूरक चक्र जाग्रति तंत्र द्वारा

मणिपूरक चक्र संरचना यह चक्र नाभि मूल की सीध में रीढ़ से गुजरने वाली सुषुम्ना की धारा में होता है। नाभि इस से जुड़ी होती है। इसके चारों ओर दस कमल दल हैं, जो नील कमल के वर्ण (रंग) के हैं। बीच के कमल धरातल में एक त्रिभुज है, जिसकी तीनों भुजाओं पर स्वास्तिक है। यह चक्र स्वाधिष्ठान से ऊपर नाभि में होता है, जहां से शक्ति (भौतिक-ऊर्जा) का निर्माण होता है। यह शक्ति उत्पन्न होकर सहस्रार के शिव बिन्दु एवं मूलाधार के बीजरूप लिंग बिन्दु पर पहुंचती है। सामान्य अवस्था में सुषुम्ना सुप्त रहती है। केन्द्र में निर्मित होने वाली ऊर्जा भौतिक होने के कारण मुख्य रूप से अधोगामी होती है। यह इड़ा-पिंगला नाड़ियों के माध्यम से मूलाधार पर पहुंचती है और मूलाधार में ही यह शक्ति का अधिक उपयोग होता है। शिव केन्द्र या ब्रह्म केन्द्र से शक्ति टकराकर पुन: इड़ा पिंगला नाड़ी से होकर ही थोड़ी-बहुत अन्य अधोगामी चक्रों पर पहुंचती है और जीव में उन चक्रों के अल्प गुण आ जाते हैं। इस प्रकार जीव की तमाम शक्तिया जड़ता की और उन्मुख होती हैं। इस प्रकार उसकी तमाम शक्तियां व्यर्थ ही नष्ट हो जाती हैं। जब मणिपूरक चक्र जाग्रत होता है, तो भौतिक ऊर्जा के निर्माण करने वाले स्थूल शरीर के अंग स्वस्थ एवं अधिक क्रियाशील होते हैं। इससे शरीर की ऊर्जा शक्ति बढ़ती है। यदि प्राणायाम द्वारा सुषुम्ना नाड़ी धारा को जाग्रत कर लिया गया है, तो इंड़ा-पिंगला से शिव बिन्दु पर पहुंचने वाली ऊर्जाधारा सुषुम्ना से होकर मूलाधार तक पहुंचती है। इस अवस्था में यह स्थूल ऊर्जा से अधिक तेज, तीव्र एवं प्रभावशाली और सूक्ष्म होती है। इससे सुषुम्ना के चक्र गतिशील हो जाते है। (क्रिया करने लगते हैं)। इस प्रकार जीव को प्राणशक्ति कई गुणा बढ़ जाती है। इस शक्ति के बढ़ जाने से साधक में इन चक्रों के गुण व्याप्त होते हैं, चाहे थोड़े कम ही हो (कुण्डलिनी धन की अपेक्षा)। किन्तु यह कुण्डलिनी के चक्रों में प्रविष्ट कराने जैसा प्रभावी नहीं होता। जब कुण्डलिनी चक्र में समाती है, तो साधक की समस्त प्राणशक्ति उन चक्रों को प्रभावित करने लगती है; क्योंकि (-) से व्यर्थ ही शक्ति नष्ट नहीं होती। देवी-देवता तन्त्र विवरण शाक्त तन्त्र के अनुसार त्रिकोण के मध्य में रुद्र का निवास है। त्रिकोण में लाकिनी देवी का वास है। रुद्र वृषभ पर आरूढ़ हैं और इनके शरीर पर भस्म है। ये तीन नेत्रों वाले हैं और इनका शरीर सिन्दूरी रंग का है, जो भभूत के कारण श्वेत लगता है। इनके दोनों हाथ वर देने की मुद्रा में त्रिभुज में व्याप्त लाकिनी देवी नीले कर्ण की, तीन मुखों एवं तीनों मुख पर तीन-तीन नेत्र वाली, तीनों मुखों में बाहर की ओर निकले दांतों वाली भयानक हैं। इनका मुख एक और मांस से भरा है और उससे रक्त एवं मांस वक्ष पर गिर रहा है। इनके एक हाथ में शक्ति अस्त्र तथा दूसरे हाथ में वरदान मुद्रा का भाव है। वैज्ञानिक अर्थ तन्त्र विवरण तन्त्र में नीले वर्ण के कमल दलों को बुद्धितत्त्वरूपी ऊर्जा माना गया है। इसका जागरण डं, दं, णं, तं, थं, दं, धं, नं, पं, फं शब्द ध्वनि से होता है। इन पर लगा चन्द्र बिन्दु रुद्र के भाव का घोतक है। रुद्र विनाशकभाव की ऊर्जा का बीज तत्त्व है। यह विनाश भौतिक तत्त्वों का होता है। प्राणियों को तो वे (जिसमें स्थित होते हैं) वर ही देते हैं; क्योंकि उनकी संहारक शक्ति से ही लाकिनी की शक्ति सक्रिय होती है और यदि इसे अन्य कुछ न मिला, तो यह शरीर (जिसमें स्थित होती है) को ही भक्षण करने लगती है। मन्त्र मोहन मंत्र जानकारी के लिए संपर्क करें सिद्धि लाभ इस चक्र के कारण ही जीवन है। यही चक्र भोजन के पाचनांगों को संचालित करता है। यदि यह चक्र दुर्बल है, तो पाचनशक्ति हमेशा मन्दाग्नि से युक्त रहेगी। इससे शरीर को पर्याप्त शक्ति नहीं मिलेगी और वह दुर्बल या रोगग्रस्त हो जायेगा। मणिपूरक चक्र ही अनुभूति, चेतना, शारीरिक क्रियाशीलता, बुद्धि एवं भौतिक अस्तित्व का कारण है। यह चक्र काम करना बन्द कर दे, तो निश्चित मृत्यु है। इस चक्र के सबल होने पर शारीरिक एवं मानसिक सबलता प्राप्त होती है, जीवनी ऊर्जा की वृद्धि होती है।

Share Us On -

Scroll to Top