शिव तांडव याद करें भाग 2

अखर्वसर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी
अखर्व-सर्व-मङ्गला कला कदम्ब मञ्जरी
रसप्रवाहमाधुरीविजृम्भणामधुव्रतम् । 
रस - प्रवाह-माधुरी- विजृम्भणा-मधु-व्रतम्।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं 
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥ 10।।
गजान्त-कान्ध-कान्तकं तमन्त-कान्तकं भजे ||10||

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस 
जयत् वदभ्र-विभ्रम-भ्रमद्-भुजङ्ग मश्वस
द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् 
द्विनिर्गमत्-क्रम-स्फुरत्-कराल-भाल हव्य वाट्
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल 
धिमिद्-धिमिद्-धिमिद्-ध्वनन्-मृदङ्ग तुङ्ग-मङ्गल 
ध्वनिक्रमप्रवर्तितप्रचण्डताण्डवः शिवः ।।11।।
ध्वनि-क्रम-प्रवर्तित-प्रचण्ड-ताण्डवः शिवः ||11||

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजो 
दृषद् - विचित्र-तल्पयोर्भुजङ्ग-मौक्ति कस्रजोर्
र्वरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः । 
वरिष्ठ - रत्न- लोष्ठयोः सुहृद्-विपक्ष-पक्ष योः ।
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
तृणारविन्द-चक्षुषोः प्रजा-मही-महेन्द्रयोः
समप्रवृत्तिकः कदा सदाशिवं भजाम्यहम्।।12।।
सम-प्रवृत्ति कः कदा सदा शिवं भजाम्यहम्।।12।।

कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्
कदा निलिम्प-निर्झरी- निकुञ्जकोटरे वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमञ्जलिं वहन् । 
विमुक्त-दुर्मतिः सदा शिरःस्थ-मञ्जलिं वहन् ।
विलोललोललोचनो ललामभाललग्नकः 
विलोल-लोल-लोचनो ललाम-भाल लग्नकः
शिवेति मन्त्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ।।13।।
शिवेति मन्त्र मुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ।।13।।

निलिम्प नाथ नागरी कदम्ब मौल मल्लिका-
निगुम्फ निर्भक्षरन्म धूष्णिका मनोहरः।
तनोतु नो मनोमुदं विनो दिनीं महनिशं
परिश्रय परं पदं तदङ्गजत्विषां चयः॥14॥

प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभ प्रचारणी
महाष्ट सिद्धि कामिनी जनावहूत जल्पना।
विमुक्त वाम लोचनो विवाह कालि कध्वनिः
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्ज याय जायताम्॥15॥

इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं 
इमं हि नित्य-मेव-मुक्त-मुत्त -मोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेति सन्ततम्। 
पठन् स्मरन् ब्रुवन्-नरो विशुद्धि-मेति सन्ततम्। 
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं 
हरे गुरौ सुभक्ति-माशु याति नान्यथा गतिं 
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिन्तनम् ।।16।।
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिन्तनम्।।16।।

पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं 
पूजा-वसान- समये दश-वक्त्र-गीतं
यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे। 
यः शम्भु-पूजन-परं पठति प्रदोषे । 
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां 
तस्य स्थिरां रथ-गजेन्द्र-तुरङ्ग-युक्तां
लक्ष्मीं सदैवसुमुखि प्रददाति शम्भुः ।।17।।
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भुः ।। 17||

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