सम्राट हरिश्चंद्र ने दिया शनि देव को श्राप

सम्राट हरिश्चन्द्र एवं शनि

आइये जानते हैं क्यों दिया à¤¸à¤®à¥à¤°à¤¾à¤Ÿ हरिश्चंद्र ने शनि देव को श्राप

रघुवंश में उत्पन्न महाराज श्री हरिश्चन्द्र अपनी सत्यप्रियता न्यायशीलता एवं दानवीरता हेतु सदैव चिरस्मरणीय रहे हैं। सम्राट हरिश्चन्द्र की कठिन तपस्या से देवराज इन्द्र घबरा गए। उन्होंने महर्षि विश्वामित्र का आह्वान किया। महर्षि विश्वामित्र ने सम्राट श्री हरिश्चन्द्र के जीवन में समस्याओं का अम्बार लगाने के लिए शनिदेव की सहायता ली।

शनि की साढ़े साती ने सम्राट हरिश्चन्द्र के जीवन को दारुण दुःखों से भर दिया। हरिश्चन्द्र का साम्राज्य छिन गया। वचन की निष्ठा के लिए अपनी पत्नी-पुत्र यहां तक की स्वयं को बेच दिया। राजा हरिश्चन्द्र श्मशान में एक चाण्डाल के यहां नौकरी करने लगे। इसी बीच शनि ने सर्प बनकर उनके पुत्र रोहित को डस लिया। रोहित के दाह संस्कार हेतु राजा हरिश्चन्द्र ने अपनी पत्नी से श्मशान कर की मांग की। पत्नी तारा ने जैसे ही साड़ी फाड़नी चाही। परीक्षण के इस चरम बिन्दु पर विश्वामित्र और शनि स्वयं इन्द्रादि देवताओं सहित श्मशान में प्रकट हो गए। सभी देवताओं ने वरदान देते हुए कहा कि "हे राजन्! तुम कर्तव्यनिष्ठा एवं सत्य की रक्षा में पूरी तरह सफल हुए।'

विश्वामित्र ने हरिश्चन्द्र का साम्राज्य उसे वापस दे दिया। अपनी दुर्दशा में अकारण शनि की व्यापक भूमिका देखकर महाराज हरिश्चन्द्र ने शनि को श्राप दिया कि सदाचारी, धर्मपुराणी तपोनिष्ठ एवं सत्यनिष्ठ व्यक्तियों पर अब से तुम्हारा कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। शनि ने भी वचन दिया कि सत्यवादी, धर्मनिष्ठ, तपोनिष्ठ व्यक्तियों को मेरे समय (साढ़े साती) में परेशान नहीं करूंगा।

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