मेष लग्न में केतु की स्थिति द्वितीय स्थान में

मेष लग्न में केतु की स्थिति द्वितीय स्थान में

मेष लग्न में केतु द्वितीय स्थान पर होने से 'वृष राशि' का होगा। वृष राशि पृथ्वीसंज्ञक, स्थिर स्वभाव की है। ऐसा जातक राजदरबार (सरकार) में इज्जत-सम्मान एवं धन पाने वाला होता है। ऐसे जातक की छोटी आयु में किस्मत चमकती है एवं. कमाना शुरू कर देता है। जातक दूसरों की नेकी को याद करने वाला कृतज्ञ होता है तथा बिना मांगे ही दूसरों की सहायता करने में रुचि रखता है। ऐसा व्यक्ति प्रायः यात्रा के द्वारा धनार्जन करने वाला, सैल्समैन, कमीशन ऐजेन्ट के रूप में स्थापित होता है।

निशानी- हुक्मरान । ठोड़ी (हिचकी) के पास शहद जैसे रंग का तिल या दाग होगा।

अनुभव-केतु धनस्थान में है। भोज संहिता के अनुसार ऐसे जातक को धन कमाने की तीव्र इच्छा जीवन पर्यन्त बनी रहेगी। फलादेश का सूत्र यह है कि केतु राक्षस का धड़ (शरीर) है। राहु राक्षस का सिर है। इसे 'ड्रेगन हैड' और केतु 'ड्रेगन टेल' कहते हैं। सिर (राहु) कुंडली के जिस भाव (स्थान) में होगा उस भाव को विकृत करेगा। दूसरों शब्दों में उस भाव के शुभ फल से जातक को वंचित करेगा। परन्तु केतु शरीर है यह तड़प रहा है तथा सिर से जुड़ने के लिए तीव्र उत्कण्ठा लिए हुए है। फलत: जन्मकुंडली के जिस भाव (स्थान) में केतु इस भाव के शुभफल पाने के लिए जातक जीवन पर्यन्त तड़पता रहेगा।

दशा-केतु की दशा शुभफल देगी।

केतु का अन्य ग्रहों से संबंध

1. केतु सूर्य - यहां केतु के साथ सूर्य विद्या में बाधा पहुंचाएगा।

2. केतु चन्द्र- यहां केतु के साथ चन्द्रमा उच्च का जातक को धनवान बनाएगा।

3. केतु+मंगल- यहां केतु के साथ मंगल जातक को खर्चीले स्वभाव का एवं मुंहफट व्यक्ति बनाएगा।

4. केतु+बुध-यहां केतु के साथ बुध जातक को दंत रोग देगा।

5. केतु + बृहस्पति-केतु के साथ बृहस्पति जातक को अत्यधिक खर्चीले स्वभाव का बनाएगा।

6. केतु + शुक्र-केतु के साथ शुक्र स्वगृही होगा जातक विवाह के बाद धनी होगा।

7. केतु + शनि-यहां केतु के साथ शनि होने से जातक की रुचि षड्यंत्रकारी कार्यों में होगी।

 

उपाय-

1. नवरत्नजड़ित श्रीयंत्र स्वर्ण में धारण करें।

2. सुबह - शाम श्री सूक्त के नित्य पाठ करें।

3. केतु शांति का प्रयोग करें।

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